नैनीताल, । उत्तराखंड सरकार के चारधाम देवस्थानम बोर्ड का गठन करने के विरोध में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले भाजपा सांसद एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रहमण्यम स्वामी की याचिका को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता को कोर्ट ने जवाब पेश करने को कहा है। आज सुनवाई के दौरान अभी तक इस मामले में राज्य सरकार द्वारा जवाब नहीं दिये जाने के बारे में ध्यानाकर्षण कराने पर कोर्ट ने राज्य सरकार को भी दो हफ्ते में जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 11 जून की तिथि नियत की गई है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई। मामले में आज देहरादून की रौलक संस्था ने अपने को पक्षकार बनाने हेतु प्रार्थनापत्र दिया। संस्था का कहना है कि सरकार द्वारा पारित चारधाम देवस्थानम एक्ट सही है और जनहित में है। बोर्ड द्वारा ही मन्दिरों की देखभाल की जा जायेगी। इसमें किसी भी हिन्दू धार्मिक भावनाओं का हनन नहीं हो रहा है, न ही संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हो रहा है। हालांकि स्वामी की वकील ने इस चारधाम देवस्थानम बोर्ड का गठन करने के मामले में अभी तक राज्य सरकार द्वारा जवाब नहीं दिए जाने की ओर जब कोर्ट का ध्यान दिलाया तो कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार भी अगली तारीख तक अपना जवाब दाखिल करे। मामले की अगली सुनवाई 11 जून को होगी। मामले के अनुसार भाजपा के राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा चारधाम के मंदिरों के प्रबंधन को लेकर लाया गया देवस्थानम् बोर्ड अधिनियम असंवैधानिक है। याचिका में यह भी कहा गया है कि देवस्थानम् बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम व 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन लेना संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है। सरकार के इस फैसले के बाद प्रभावित धार्मिक स्थानों व मंदिरों के पुजारियों में तीखा रोष पैदा हो गया था। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि पूर्व में कुछ राज्य तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश , केरल व महाराष्ट्र ने भी इस तरह के निर्णय लिये थे। उनके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी और उनको जीत मिली थी। उन्होंने यह भी कहा कि मामले में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय पहले से ही हैं। उन्होंने उत्तराखंड सरकार के फैसले को भाजपा की नीतियों के भी खिलाफ बताया है। पूर्व में जिन राज्यो ने इस तरह के निर्णय लिये थे, उन्होंने कभी मस्जिद गिरजाघर को शामिल क्यों नही किया। खाली मन्दिरों को ही शामिल क्यों किया गया? इसमें सरकार का यह तर्क बिल्कुल असंवैधानिक है। उन्होंने अपनी जनहित याचिका में यह भी प्रार्थना की है कि जबतक इसमें कोर्ट से कोई निर्णय नही आ जाता सरकार कोई अग्रिम कार्यवाही न करे परन्तु सरकार ने उनकी जनहित याचिका दायर करने के कुछ ही समय बाद सीईओ नियुक्त कर दिया, जिसमें स्पष्ट लग रहा है कि सरकार की मंशा अच्छी नहीं है।